लखनऊ। जिला प्रशासन, संबंधित विभाग और सामाजिक संस्थानों की सारी कवायदें और दावें पीछे रह गए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) की प्री-मानसून रिपोर्ट-2018 के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। पिछले चार साल से यही हालात है और इसका सीधा असर हमारी जिंदगी पर पड़ रहा है। डिप्रेशन, हाइपरटेंशन और चिड़चिड़ापन लखनऊ के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। यदि हम अभी भी नहीं चेते तो हालात और भी बदतर हो सकते हैं।
व्यावसायिक इलाकों में दिन के समय ध्वनि प्रदूषण 76.2 से 83.4 डेसीबल के बीच रिकॉर्ड हुआ है। रात में यह 56.2 से 68.7 डेसीबल के बीच था। व्यावसायिक क्षेत्र में अनुमन्य सीमा का मानक ही दिन के समय 65 और रात में 55 डेसीबल होता है। शहर में वाहनों की संख्या 20 लाख के ऊपर पहुंच चुकी है। ऐसे में हर दो व्यक्ति के बीच एक वाहन मौजूद है। शहर में लगने वाला लगातार जाम और वाहनों में उपयोग हो रहे प्रेशर हार्न को इसका कारण बताया जा रहा है। -वेब
Add Comment