नई दिल्ली । अमेरिका ने ईरान पर लगे प्रतिबंध से भारत को तात्कालिक छूट दे दी है। लेकिन कुल खपत में 83 फीसद आयातित तेल पर निर्भर रहने वाले भारत के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं है। एक तरफ जहां भारत को ईरान जैसे किसी दूसरे बड़े आपूर्तिकर्ता की तलाश करनी है। दूसरी तरफ ईरान से जो तेल खरीदे जाने वाले तेल के भुगतान की व्यवस्था भी करनी होगी। इन दोनों मुद्दों पर अभी भारत सरकार की ईरान व कुछ यूरोपीय देशों के साथ वार्ता चल रही है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को आधार बनाते हुए अमेरिका की तरफ से लगाए प्रतिबंध सोमवार से लागू हो गए हैं। अमेरिकी प्रशासन ने यह दावा कि यह अब तक का किसी भी देश पर लगाया गया सबसे कड़ा प्रतिबंध है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने सोमवार को एक बयान में कहा कि भारत, चीन, जापान, इटली, ग्रीस, दक्षिण कोरिया, ताइवान तथा तुर्की को ईरान से तेल खरीदते रहने की सुविधा प्रदान कर दी है। हालांकि वे पहले कह चुके हैं कि छूट हासिल देशों को ईरान से तेल का आयात छह महीनों में शून्य पर लाना होगा। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने पिछले शनिवार को कहा था कि अमेरिका ने भारत को प्रतिबंध से छूट दे दी है।
सरकारी तेल कंपनियों की तरफ से मिली सूचना के मुताबिक भारत को मई, 2019 तक हर महीने 12.5 लाख टन कच्चा तेल ईरान से खरीदना होगा। इस तरह से भारतीय तेल कंपनियां 75 लाख टन अतिरिक्त कच्चा तेल खरीदने का समझौता कर सकेंगी। पिछले वर्ष भारत ने ईरान से 2.25 करोड़ टन कच्चा तेल खरीदा था। पिछले वर्ष तक सऊदी अरब और इराक के बाद भारत ने सबसे ज्यादा तेल ईरान से खरीदा था। इस वर्ष के पहले तीन-चार महीनों तक ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक अभी ईरान से जितना तेल खरीदा जाता था उसकी भरपाई बेहद आसानी से सऊदी अरब या इराक से की जा सकेगी। लेकिन असल समस्या मई, 2019 के बाद से उत्पन्न हो सकती है जब ईरान से तेल खरीदने पर पूरी तरह से पाबंदी लग जाएगी। ईरान जितने आसान शर्तो पर बड़ी मात्र में तेल भारत का देता है, उसकी भरपाई दूसरे देशों से करना आसान नहीं होगा। -वेब