अमृतसर। पिछले 34 साल से पाकिस्तान की कोट लखपत स्थित जेल में 7 साल का लकड़ा बंद है। उसकी राह देखते-देखते इस परिवार के बाकी लोगों की आंखों के आंसू सूख चुके हैं। बूढ़े हो चुके माता-पिता के दिल में बस एक ही तमन्ना है कि किसी तरह मरने से पहले एक बार उसको जी भरके देख लें। नानक सिंह नाम का यह लड़का महज 7 साल का था, जब गलती से दो देशों के बीच लकीर (बार्डर) को लांघ गया।
अमृतसर के अजनाला सेक्टर में रावी नदी से सटे गांव बेदी छन्ना के रतन सिंह बताते हैं कि 1985 में जब परिवार खेतों में गया था तो उनका 7 साल का बेटा नानक सिंह खेलते हुए सीमा पार कर पाकिस्तान में जा पहुंचा। इसके बाद पाकिस्तानी रेंजर्स से संपर्क किया गया तो उन्होंने लौटाने से इनकार कर दिया। फिर थाना रमदास में सूचना दी गई तो पाकिस्तान की तरफ से उनकी कुछ भैंसें लौटाने के बदले नानक सिंह को भेजने की बात कही, लेकिन यह गरीब परिवार न तो उन भैंसों को ढूंढ सकता था और न ही नई भैंसें खरीदकर देने की स्थिति में था।
सूची के मुताबिक नानक सिंह के पिता का नाम, पता समेत बाकी जानकारी ज्यों की त्यों थी, मगर उसका नाम बदला हुआ (नानक सिंह की बजाय कक्कड़ सिंह) था। एक संस्था ने रिहाई की कोशिशों के बीच वहां एक वकील भी किया, लेकिन नाम बदला होने के कारण बात फिर सिरे नहीं चढ़ सकी। परिजनों का कहना है कि उनके बेटे का नाम भी ठीक वैसे ही बदला गया, जैसे सरबजीत सिंह का नाम बदल दिया था। उन्हें आशंका है कि पड़ोसी मुल्क नानक सिंह के साथ भी सरबजीत सिंह जैसा ही सलूक कर सकता है। पिता रतन सिंह और मां प्यारी की तमन्ना है कि मरने से पहले एक बार वो अपने लाल को जी भरकर देख लें।
वहीं, गांव वालों को समझ नहीं आ रहा कि आखिर किस जुर्म में नानक सिंह को जेल में डाला गया। जब वह सीमा पार गया तो महज 7 साल का था और 7 साल का बच्चा तो आतंकवादी भी नहीं हो सकता। परिवार ने भारत सरकार को कई पत्र लिखे, लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने उनकी सुनवाई नहीं की। -वेब