संजीवनी

आखिर क्यों करते हैं लोग आत्महत्या ?

समान्यतयः जब व्यक्ति के सामने जिंदा रहने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो वह व्यक्ति आत्महत्या के बारे में सोचने लगता है इसका सबसे मुख्य कारण है कर्ज में डूब जाना, व्यापार में अत्यधिक नुकसान या फिर समाज में बेइज्जत होने के डर से वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।
यह जरूरी नहीं कि व्यक्ति यदि सम्पन्न है तो वह आत्महत्या नहीं करेगा। जैसे ही इंसान के अंदर नकरात्मक सोच जन्म लेने लगती है वह धीरे धीरे आत्महत्या की तरफ ही प्रेरित करती है या यूं कहें कि आत्महत्या की तरफ उठने वाला यह पहला कदम ही होता है। नकरात्मकता जब अत्यधिक हो जाती है और वह जब विकराल रूप धारण कर लेती है तो व्यक्ति आत्महत्या के बहुत ही करीब आ जाता है।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में आत्महत्या के मामले बहुत बढ़ रहे हैं। जैसा कि हम लोग सुनते हैं या समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। आजकल व्यक्ति ज्यादा तनाव में रहने लगा है जिसका मुख्य कारण है भौतिकतावादी जिंदगी। जबकि ऐसा पहले नहीं था पहले व्यक्ति हर हाल में संतोष कर लेता था चाहे उसके पास मोबाइल हो या न हो, कार हो या न हो, एलईडी टीवी हो या न हो। एक ही तरह के कपड़े परिवार का प्रत्येक सदस्य पहन लेता था और कोई शिकायत भी नहीं करता था। पहले एक व्यक्ति कमाता था और सब संतुष्ट रहते थे और स्वस्थ रहते थे लेकिन आज परिवार के ज्यादातर सदस्य कमाते हैं और उसके बावजूद वो संतुष्ट नहीं हो पाते हैं और बीमारी अलग से उन्हें घेरे रहती है। आजकल व्यक्ति को हर एक चीज चाहिए इसके पीछे मुख्य कारण सिनेमा जगत है जिसने व्यक्ति की सोच को बदल दिया है। व्यक्ति अब संतुष्ट नहीं रहना चाहता है और उसने अपनी जिंदगी में भौतिक वस्तुओं को ज्यादा अहमियत दे दी है।
भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए यहां तक कि उसने रिश्ते नातों, मित्रों यहां तक कि परिवार के सदस्यों की भी कुर्बानी करना शुरू कर दिया हैं जिसके चलते वह अपने मन की बात अपनो से नहीं कर पाता है और जब असफलता हाथ लगती है तो तनावग्रस्त हो जाता है और नकरात्मकता को जन्म देता है जो धीरे धीरे उसे आत्महत्या की तरफ ले जाती है।
जब हम किसी परीक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होने के लिए तैयारी करते हैं तो भी तनाव की स्थिति होती है लेकिन उसमें नकरात्मकता नहीं होती है एक विश्वास होता है। लेकिन जब हमारे अंदर से आत्मविश्वास खत्म हो जाता है तो वही तनाव नकरात्मक तनाव हो जाता है जो हमारे लिए हानिकारक होता है।
तनावमुक्त होने या आत्महत्या से बचने के उपाये
हालांकि संसार में सबसे आसान कार्य होता है उपदेश देना और सबसे ज्यादा कठिन कार्य होता है उसी उपदेश का स्वयं पालन करना। लेकिन हमारे वश में अगर कुछ है तो वह सिर्फ प्रयास करना और कम से कम हम प्रयास तो कर ही सकते हैं।
सबसे पहली अहम बात है कि परिवार को पारिवारिक विघटन से बचाना जरूरी है परिवार के हर सदस्य को यह मानकर चलना चाहिए कि हमें अपनों से प्रतियोगिता नहीं करनी है या उन्हें हमें नहीं हराना है अगर हम उन्हें हरायेंगे तो हम स्वयं भी हार जायेंगे। व्यक्ति जब अकेला होता है तो या परिवार से कट जाता है तो जल्दी ही वो डिप्रेशन का शिकार हो जाता है जो कि आत्महत्या का एक मुख्य कारण है। इसमें मुख्य भूमिका परिवार के मुखिया की होती है। अगर परिवार का मुखिया चाहेगा तो विघटन की स्थिति कभी नहीं आयेगी।
दूसरी अहम बात है इच्छा या चाहत या इंसान का संतुष्ट रहना। कहते हैं संतोषम परमोधनम ! जी हां ये सच है जो है आपके पास है उसी में संतोष करना ये बड़ी बात है। संपन्न पिता ने जगुवार कार गिफ्ट में न देकर बीएमडब्ल्यू दे दी तो तूफान मचा दिया और बीएमडब्ल्यू कार को नदी में धकेल दिया। कभी आपने सोचा है कि जो हमारे पास है ऐसे भी कई लोग हैं जो उनके पास वो भी नहीं है। इसलिए संतुष्ट रहना बहुत जरूरी है।
तीसरी बात अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। आपको ये सोचना चाहिए कि आपके परिवार को आपकी जरूरत है, मित्रों और रिश्तेदारों को आपकी जरूरत है। समाज को आपकी जरूरत है सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए। मनचाही प्रेमिका से विवाह नहीं हुआ तो आत्महत्या कर ली ये तो सरासर गलत है। माता-पिता के बारे में नहीं सोचा, भाई बहनों के बारे में नहीं सोचा और कभी-कभी तो अपनी पत्नी, बच्चों के बारे में भी नहीं सोचा और सोचा तो सिर्फ अपने बारे में और आत्महत्या कर ली।
चौथी बात गुस्सा या क्रोध। कहते हैं कि गुस्सा इंसान की बु़द्धि को नष्ट कर देता है हालांकि ये इंसान के बस में नहीं होता है ऐसा गुस्से का विकराल रूप ही है कि गुस्से में व्यक्ति पूरे परिवार का मर्डर कर देता है और बाद में स्वयं आत्महत्या कर लेता है। इसलिए जहां तक हो सके व्यक्ति को अपने गुस्से पर काबू पाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। क्रोध में लिया गया निर्णय बाद में पश्चाताप का कारण बनता है। – संपादक, योगेश कपूर

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