लखनऊ। निजी अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए जनता और सरकार के लिए अलग-अलग शुल्क है। खुद निजी अस्पताल का विकल्प चुनने पर मरीज को करीब पांच गुना ज्यादा शुल्क देना होता है। वहीं अगर सरकार की तरफ से मरीज को निजी अस्पताल भेजा जाता है तो सरकार अलग दर से भुगतान करती है। शासन से निर्धारित दर के अनुसार, मरीज को सिर्फ आईसोलेशन वॉर्ड के लिए दस हजार रुपये प्रतिदिन देने पड़ रहे हैं। जबकि सरकार की तरफ से महज 1800 रुपये दिए जाते हैं।
प्रदेश के निजी अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के इलाज की दो व्यवस्थाएं हैं। एक सरकार की तरफ से मरीज को भर्ती करवाना और एक मरीज द्वारा खुद निजी अस्पताल का चयन। हालांकि खुद अस्पताल चुनना काफी मंहगा साबित हो रहा है। राजधानी लखनऊ में भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था है। शहर में छह अस्पतालों को स्वास्थ्य विभाग ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। इन अस्पताल में सिर्फ विभाग द्वारा भेजे गए मरीज ही भर्ती किए जाते हैं। इलाज का भुगतान भी विभाग करता है। जबकि दस से अधिक निजी अस्पतालों में ऐसे मरीजों को भेजा जाता है, जो निजी अस्पताल में इलाज का विकल्प खुद चुनते हैं। ऐसे मरीजों को इलाज का खर्च भी खुद उठाना पड़ता है।
सरकारी दर से पांच गुना शुल्क होने के बावजूद निजी अस्पताल कभी दवा तो कभी अन्य मद के नाम पर मरीजों से वसूली में जुटे हैं। मरीज भर्ती करने के दौरान तय शुल्क में दवाएं शामिल नहीं होतीं। ऐसे में मरीजों से दवाओं के नाम पर ज्यादा वसूली हो रही है। – वेब
पांच गुना महंगा है खुद निजी अस्पताल में कोविड 19 का इलाज करवाना
