चीन अब अपने शिंजियांग प्रांत को अमेरिका के कैलिफोर्निया की तर्ज पर विकसित करने में लग गया है। चीन भारतीय उपमहाद्वीप में बहने वाली दो विशाल नदियों ब्रह्मपुत्र और सिंधु की धारा को बदलने में लग गया है जो करोड़ों लोगों के जीवन का आधार हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस कदम का मकसद पानी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना है। उन्होंने सलाह दी है कि ड्रैगन की इस चाल को नाकाम करने के लिए भारत को ’अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय फ्रेमवर्क’ बनाना चाहिए।
दरअसल, सिंधु और ब्रह्मपुत्र दोनों ही विशाल नदियां तिब्बत से शुरू होती हैं। सिंधु नदी पश्चिमोत्तर भारत से होकर पाकिस्तान के रास्ते अरब सागर में गिरती है। वहीं ब्रह्मपुत्र नदी पूर्वोत्तर भारत के रास्ते बांग्लादेश में जाती है। ये दोनों ही नदियां दुनिया की सबसे विशाल नदियों में शामिल हैं। चीन कई साल से ब्रह्मपुत्र नदी की दिशा को बदलने में लगा हुआ है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी को यारलुंग जांगबो कहता है जो भूटान, अरुणाचल प्रदेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र और सिंधु दोनों ही नदियां चीन के शिंजियांग इलाके से निकलती हैं। सिंधु नदी लद्दाख के रास्ते पाकिस्तान में जाती है।
हाल ही में चीनी प्रशासन ने इस परियोजना को फिर शुरू किया है। इसका ट्रायल वर्तमान समय में यून्नान प्रांत में चल रहा है। यून्नान में सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है। माना जा रहा है कि इसी तकनीक का इस्तेमाल बाद में शिंजियांग में किया जाएगा। बताया जा रहा है कि 600 किलोमीटर लंबी यून्नान सुरंग का निर्माण अगस्त 2017 में शुरू हुआ था। इस परियोजना पर 11.7 अरब डॉलर का खर्च आ रहा है।
चीन ने पहले ही बह्मपुत्र की सहायक नदी शिआबूकू की धारा को पहले ही रोक दिया है। हाल ही में गलवान घाटी में सघर्ष के बाद चीन ने गलवान नदी के पानी को भी भारत में बहने से रोक दिया था। गलवान नदी सिंधु की एक सहायक नदी है और यह अक्साई चिन से निकलती है जिस पर चीन ने कब्जा कर रखा है। तिब्बती मामलों के जानकार क्लाउडे अर्पी के मुताबिक चीन सिंधु नदी की धारा को पश्चिमी तिब्बत में लद्दाख में घुसने से पहले ही उसे बदलकर शिंजियांग के तारिम घाटी की ओर मोड़ना चाहता है। -वेब