नई दिल्ली। जिस तेजी से तालिबान काबुल के नजदीक पहुंचने लगा है उसको देखते हुए भारत सरकार की भावी योजना भी तैयार है। इसके तहत भारत अपने कर्मचारियों संग वहां बचे खुचे अल्पसंख्यकों (हिंदुओं और सिखों) को भी बाहर निकाल सकता है। इस बात का संकेत विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी दे रहे हैं जो अफगानिस्तान के हालात की चौबीसों घंटे निगरानी कर रहे हैं।
दरअसल, दुनिया के दूसरे देशों से भी इस तरह की सूचनाएं आ रही हैं कि वो भी काबुल स्थित अपने दूतावास को बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं। एक दिन पहले ही अफगानिस्तान के एक बड़े शहर मजार-ए-शरीफ से भारत ने अपने 50 कर्मचारियों व अधिकारियों को सकुशल निकाला है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है कि अफगानिस्तान के हालात काफी चिंताजनक है। हम पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। हमें अभी भी उम्मीद है कि अफगानिस्तान में एक समग्र शांति वार्ता को लेकर सहमति बनेगी। इसके लिए दोहा में गुरुवार को बैठक हो रही है जिसमें भारत भी शामिल हो रहा है।
हमारी मुख्य चिंता वहां महिलाओं व अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने को लेकर है। पिछले साल भी 380 अल्पसंख्यकों को निकाल कर भारत लाया गया था। हमारा मिशन अभी भी उनके संपर्क में है ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें जरूरी मदद पहुंचाई जा सके। इससे ज्यादा मैं अभी कुछ नहीं कहना चाहता।
अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात के बावजूद भारत अभी वहां अपने काबुल दूतावास को बंद करने नहीं जा रहा है। हालांकि अफगानिस्तान में रहने वाले सभी भारतीय नागिरकों को यह मशविरा जरूर दिया गया है कि जब तक अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवाएं चालू हैं तब तक उसके जरिए वहां से बाहर निकल लें। -वेब
अल्पसंख्यकों को अफगानिस्तान से निकालने की भारत सरकार की भावी योजना
