धर्मशाला। हिमाचल प्रदेश में प्रकृति ने अपना रौद्र रूप् दिखाना शुरू कर दिया है। बीते कुछ समय से नुक्सान की ज्यादा खबरें आने लगी हैं। पहले मलबा गिरने की सूचनाएं जरूर मिलती थीं, लेकिन जानी नुक्सान किन्नौर व कोटरोपी जैसा नहीं होता था। लेकिन अब इन हादसों में एकाएक बढ़ोतरी हो गई है। इसके लिए मानवीय भूल ही जिम्मेवार है। पहाड़ दरकने से प्रदेश में अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। लगातार हो रही कटिंग सहित भूकंप व भारी बारिश पहाड़ दरकने का कारण बनती है। इसके अलावा पहाड़ों में स्थापित हाइड्रो प्रोजेक्ट भी इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं। प्रोजेक्ट निर्माण के दौरान टनल निकालने व सड़कें बनाने के लिए पहाड़ों की अंधाधुंध कटिंग की जाती है। ऐसे में प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
शिमला। जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर बारिश अधिक होना चट्टड्ढानें व पत्थर गिरने का बड़ा कारण बन रहा है। राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के वरिष्ठ विज्ञानी एसएस रंधावा ने कहा कि इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी। इसका कारण पहाड़ों में गोल पत्थर के बजाय स्लेट वाला पत्थर होता है। बारिश के बाद पहाड़ों पर धूप खिलने से चट्टानें फैलने से खिसकती हैं। पहाड़ों पर वनस्पति कम या नाममात्र होने से पत्थरों को मिट्टी की पकड़ नहीं रहती। किन्नौर, लाहुल-स्पीति, कुल्लू, चंबा, मंडी व कांगड़ा जिले के कुछ हिस्से में चट्टाने गिरने की घटनाएं होती रहती हैं। -वेब
हिमांचल प्रदेश में प्रकृति ने दिखाया अपना रौद्र रूप
