2014 के बाद से भाजपा की लगातार जीत से यह सिद्ध हो गया है कि यूपी के पिछड़े और अति पिछड़े वोट बैंक को साधे बिना प्रदेश और केंद्र की सत्ता पर काबिज होना मुश्किल है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में भी प्रदेश के पिछड़े और अति पिछड़े वोट बैंक को साधकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत की हैट्रिक बनाने की तैयारी की है। 16-17 जनवरी को दिल्ली में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में यूपी से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से राजनीतिक प्रस्ताव का अनुमोदन कराकर लोकसभा चुनाव में पिछड़ों को साधने का संदेश दिया गया।
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने पहली बार प्रदेश के गैर यादव पिछड़े और अति पिछड़ों को साधने की रणनीति पर काम शुरू किया था। यह प्रयोग सफल रहा। भाजपा ने 80 में से 73 सीटें जीतकर पीएम मोदी के नेतृत्व में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। उसके बाद से प्रदेश में भाजपा की राजनीति पिछड़े वर्ग के इर्द-गिर्द घूमती है। पार्टी ने सत्ता से लेकर संगठन में पिछड़ों की भागीदारी को बढ़ाया। केशव प्रसाद मौर्य को 2016 में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
लोकसभा चुनाव 2019 में भी सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद पिछड़े वोट बैंक के बूते ही भाजपा 80 में से 64 सीटें जीतने में सफल रही। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर दो दर्जन से अधिक पिछड़े वर्ग के सांसद चुने गए। योगी सरकार के 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में पिछड़े वर्ग से 18 मंत्री हैं। 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 137 सीटों पर पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से 89 चुनाव जीते। यूपी से प्रमुख पिछड़ी जातियों में जाट, शाक्य, राजभर, यादव, कुर्मी, निषाद, गुर्जर समाज के नेताओं को राज्यसभा भेजा गया है। -वेब
यूपी के पिछड़े और अति पिछड़े वोट बैंक को साधे बिना केन्द्र की सत्ता पर काबिज होना मुश्किल
